हमारे देश में एक से बढ़कर एक समृद्ध राजा महाराजा हुए हैं लेकिन इतिहास में स्वर्णिम शब्दों में केवल उन्ही राजाओ का नाम लिखा गया जो अपने सुख-समृद्धि की चिंता ना करते हुए अपनी मातृभूमि के लिए लड़े। ऐसे ही एक वीर राजा महाराणा प्रताप भी थे जो ना केवल राजस्थान की शान थे बल्कि उनकी गौरव गाथा पूरा देश जानता है। इस लेख में हम आपको देश के एक वीर शासक ‘महाराणा प्रताप की जीवनी’ (Maharana Pratap Biography in Hindi) बताने वाले है।
महाराणा प्रताप की जीवनी – Maharana Pratap Biography in Hindi
महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसोदिया वंश के शासक थे जिन्हें उनकी बहादुरी की वजह से ही जाना जाता है। एक छोटे राजा होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी मातृभूमि और अपने लोगों के लिए मुगल सम्राट अकबर के साथ सालों तक संघर्ष किया और कभी भी हार नहीं मानी। वह भारत के इतिहास के अब तक के सबसे वीर राजाओं में से एक माने जाते हैं जिन्होंने शत्रु के सामने कभी घुटने नहीं टेके। उन्होंने ना केवल मुगलों से लड़ाई की बल्कि उन्हें हराया भी।
Maharana Pratap का नाम वैसे तो इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है लेकिन यह काफी दुख की बात है कि आज भी काफी सारे लोग महाराणा प्रताप की जीवनी अर्थात ‘Maharana Pratap Biography in Hindi’ के बारे में नहीं जानते। यही कारण है कि हमने यह लेख तैयार किया है जिसमें आपको ‘महाराणा प्रताप की जीवनी’ पूरी जानकारी के साथ आसान भाषा में बताई जाएगी जिससे कि आप नजदीकी से वीर राणा की जीवन को समझ पाए।
आरम्भिक जीवन
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को वर्तमान समय की राजसमंद के कुंभलगढ़ किले में हुआ था जो उस समय मेवाड़ का हिस्सा था। महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था और उनका जन्म कुंभलगढ़ के राणा उदय सिंह और माता रानी जयवंती बाई के घर पर हुआ था। महाराणा प्रताप को उनके बचपन में कूका/कीका नाम से पुकारा जाता था। आगे जाकर हिंदू शिरोमणि के लाने वाले महाराणा प्रताप बचपन से ही एक वीर योद्धा थे।
महाराणा प्रताप के जीवन का शुरुआती समय हर था उनका बचपन मुख्य रूप से भीलो के बीच में बीता था और क्योंकि भील लोग अपने बच्चों को कूका/कीका कहकर बुलाते थे तो ऐसे में महाराणा प्रताप को भी बचपन में कूका/कीका नाम से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप के पिता राणा उदय सिंह एक निपुण योद्धा थे और राणा बचपन से ही उनके जैसा बनना चाहते थे। महाराणा प्रताप ने शुरुआत में भील लोगो के साथ ही युद्ध कला सीखी थी।
इसके बाद महाराणा प्रताप को शास्त्र व अस्त्र की सटीक शिक्षा दिलाने के लिए उनके पिता उदय सिंह ने उन्हें लोकप्रिय गुरु राघवेंद्र के पास भेज दिया जिन्होंने उन्हें अस्त्र व शास्त्र की शिक्षा देकर एक निपुण योद्धा बनाया। गुरु राघवेंद्र ने महाराणा प्रताप के रूप में एक ऐसा ही होता तैयार किया था जिसे हराना अच्छे-अच्छे योद्धाओं के लिए मुश्किल था। महाराणा के युद्ध कौशल की वजह से ही अकबर के बड़े-बड़े योद्धा भी उनके सामने आने से डरते थे।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप बचपन से ही काफी साहसी और युद्ध कौशल में निपुण थे। जब साल 1572 में महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की मृत्यु हुई तो महाराणा उदय सिंह की पत्नी रानी धीरबाई चाहती थी कि उनका बेटा जगमल राजा बने लेकिन वरिष्ठ दरबारियों ने सबसे बड़ा बेटा होने के कारण महाराणा प्रताप को भी राजा के पद के लिए चुना और इस तरह से महाराणा प्रताप सिसोदिया वंश के मेवाड़ के 54 वे राजा बने।
हल्दीघाटी का युद्ध–Maharana Pratap Biography
साल 1567 से लेकर 1568 में होने वाले चित्तौड़गढ़ के घेराबंदी की वजह से मुगलो को मेवाड़ का उपजाऊ पूर्वी हिस्सा तो मिल चूका था लेकिन वन और पहाड़ो से भरपुर अरावली क्षेत्र अब भी महाराणा प्रताप के पास था। मुगल शासक अकबर चाहता था कि वह मेवाड़ को अपने साम्राज्य में शामिल करके गुजरात के लिए एक सटीक और मजबूत रास्ता तैयार कर ले।
जब प्रताप का राज्याभिषेक हुआ और वह महाराणा बने तो अकबर ने आमेर के मानसिंह के साथ अपने कुछ दूतों को उनके पास भेजा और उन्हें के अन्य राजपूत राजाओं की तरह अपने साम्राज्य में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। लेकिन जब प्रताप ने अकबर के प्रस्ताव को ठुकराते हुए उसका गुलाम बनने से इनकार किया तो यह तय हो गया कि अब एक युद्ध होगा।
इसके बाद शुरुआत हुई हल्दीघाटी के युद्ध की। अकबर एक बड़ा शाशक था और उसका साम्राज्य काफी बड़ा था तो वही दूसरी तरफ महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों के युद्ध कौशल और शौर्य का कोई जवाब नही था। 18 जून 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया। यह युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर के द्वारा भेजे गए आमेर के मान सिंह प्रथम के बीच मे था।
महाराणा प्रताप की वीरता
जहा एक तरफ महाराणा प्रताप के पास 3000 घुड़सवार और 400 भील सैनिक थे तो वही आमेर का मानसिंह प्रथम 10,000 सैनिकों के साथ महाराणा का सामना करने आया था। माना जाता है कि शुरुआत में राणा का पलड़ा भारी रहा लेकिन बाद में मानसिंह के द्वारा हारती मुगल सेना को देखकर यह बात फैला दी गयी कि अकबर एक लाख सैनिकों को लेकर आ रहा है जिससे उनमे जोश आ गया और मुगलों का पलड़ा भारी होने लगा।
हल्दीघाटी का युद्ध करीब 3 घंटे चला था। 3 घण्टे के इस युद्ध मे भले ही निर्णय अकबर की तरफ रहा हो लेकिन वह प्रताप को पकड़ने में विफल रहे। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि प्रताप को बचाने के लिए उनके कुछ सहयोगियों ने उन्हें युद्ध से जाने को कहा और इसमें उनकी मदद की जिससे कि वह एक बार फिर मेवाड़ पर जीत हासिल कर सके। हल्दीघाटी के युद्ध के एक सप्ताह के अंदर मानसिंह ने गोगुन्दा पर विजय हासिल की और फिर वह वापस चला गया।
इसके बाद 1576 के सितंबर में अकबर ने खुद महाराणा प्रताप के खिलाफ एक अभियान का संचालन किया जिसमे उसने गोगुन्दा, उदयपुर और कुम्भलगढ़ को अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन एक काम जो अकबर अब तक नहीं करपया था वो यह था की वह मेवाड़ तो काफी हद तक जीत गया था लेकिन वह मेवाड़ के राणा अर्थात महाराणा प्रताप को अब तक नहीं हरा पाया था। अकबर ने महाराणा को अपने साम्राज्य में लेने की कोशिश तो पूरी की लेकिन स्वाभिमान से भरपूर महाराणा को जीतना इतना आसान नहीं था।
कैसे मेवाड़ को वापस लिया महाराणा ने
भले ही सेना कम होने की वजह से महाराणा प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध हार गए थे लेकिन उनका स्वाभिमानी क्षत्रिय रक्त अब भी अकबर के सामने झुकने के लिए उन्हें नहीं कह रहा था। साल 1979 में जब अकबर का ध्यान मेवाड़ से हटकर दूसरे मामलो जैसे की बिहार और बंगाल के मामले और मिर्जा हकीम की पंजाब में घुसपैठ पर गया तो महाराणा ने मेवाड़ को वापस लेने के लिए अपनी कोशिश शुरू कर दी।
अकबर ने अब्दुल रहीम खान-ए-खाना को मेवाड़ को हड़पने के लिए भेजा लेकिन वह अजमेर में ही रुक गया। इसके बाद 1582 में महाराणा प्रताप ने मुगलो की पोस्ट पर देवर की लड़ाई में हमला किया और देवर को जीत लिया। इस जीत से मेवाड़ की सभी अन्य 36 चौकियों पर राणा का अधिकार हो गया। इसके बाद अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा को 1984 में मेवाड़ पर आक्रमण करने को भेजा लेकिन वह कुछ खास कर नहीं पाया।
इसके बाद साल 1985 में अकबर लाहौर चल गया और वहा बैठा हुआ अगले 12 वर्षो तक वह रहकर उत्तर-पश्चिम की स्थिति को देखते रहा। इस दौरान उसने मेवाड़ के खिलाफ कोई बड़ा आक्रमण भी नहीं चलाया। वही दूसरी तरफ राणा ने संघर्ष करते हुए अपनी सेना तैयार करते हुए धीरे धीरे करीब अधिकांश मेवाड़ को जीत लिया और वर्तमान डूंगरपुर के पास अपनी नई राजधानी चावंड का निर्माण किया।
महाराणा प्रताप की मृत्यु
हिंदू शिरोमणि महाराणा प्रताप की मृत्यु के बारे में कहा जाता है कि उनकी मृत्यु शिकार के समय हुई एक दुर्घटना की वजह से हुई थी। माना जाता है कि उन्होंने अपने बच्चों से कहा था कि वह कभी भी मुगलों के सामने आत्मसमर्पण ना करें और हो सके तो चित्तौड़ को वापस अपने राज्य में शामिल करें और स्वाभिमान का जीवन जिए। महाराणा प्रताप की मृत्यु के बाद उनके सबसे बड़े बेटे अमर सिंह प्रथम ने उनकी जगह ली।
महाराणा प्रताप इतने महान योद्धा थे की उनकी मृत्यु पर अकबर भी रोया था। अकबर के दरबारी दुरसा आड़ा ने महाराणा की मृत्यु की खबर को सुनने पर अकबर की मनोदशा का विवरण करते हुए बताया की महाराणा प्रताप इतने बड़े वीर थे की उनकी मृत्यु की खबर सुनकर सम्राट अकबर ने भी अपने आंसू बहाये थे। महाराणा उन गिने चुने शासको में से एक थे जिन्हे अकबर पूरी जी-जान लगाने के बावजूद भी आत्मसमर्पण नहीं करा सका।
निष्कर्ष!
जहा एक तरफ मुग़ल शासक अकबर के आगे अधिकतर राजाओं ने घुटने टेक दिए थे तो वही दूसरी तरफ कुछ राजा ऐसे थे जो अपनी मातृभूमि और अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने अंत तक लड़े थे और उन्ही राजाओ को आज सम्मान की नजरो से देखा जाता है। महाराणा प्रताप भी एक ऐसे ही शासक थे जिन्होंने अकबर के आगे कभी समर्पण नहीं किया लेकिन फिर भी कई लोग ‘महाराणा प्रताप की जीवनी’ (Maharana Pratap Biography in Hindi) के बारे में नहीं जानते। यही कारण है की हमने यह लेख तैयार किया है जिसमे महाराणा प्रताप की जीवनी आसान भाषा में बताई गयी है